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नई रचनाएँ विशेष



रवींद्रनाथ ठाकुर




आँख की किरकिरी
उपन्यास
रवींद्रनाथ ठाकुर

‘… मैंने समझा, तुमने मुझे एकबारगी त्याग दिया। इसके बाद मैं बिलकुल नष्ट हो सकती थी - मगर पता नहीं तुममें क्या है, तुम दूर रह कर भी बचा सकते हो। मैंने दिल में तुम्हें जगह दी है, इसी से पवित्र रह सकी। कभी तुमने मुझे ठुकराकर अपना जो परिचय दिया था, तुम्हारा वही कठिन परिचय सख्त सोने की तरह, ठोस मणि की तरह मेरे मन में है, उसने मुझे मूल्यवान बनाया है। देवता, तुम्हारे पैर छू कर कहती हूँ, वह मूल्य नष्ट नहीं हुआ है।’


रूपेश कुमार




हिंदी जाति और रामविलास शर्मा
विचार
रूपेश कुमार

डॉ. रामविलास शर्मा हिंदी जाति के साथ-साथ तमिल, तेलगू, उड़िया, बंगाली आदि जातियों की चर्चा भी करते हैं और उनके विकास पर बल देते हैं। लेकिन इस बात पर वे खेद प्रकट करते हैं कि अन्य भाषा-भाषी जातीयता की धारणा जितनी प्रबल है उतनी हिंदी के अंदर नहीं है, इसी कारण साम्प्रदायिकता और जातिवाद सर्वाधिक इसी क्षेत्र में देखने को मिलता है।

विभूति नारायण राय


तबादला
उपन्यास
विभूति नारायण राय

राजनीति से इन लोगों के सरोकार बड़े सीधे-साधे हैं। अगर बिना घुमाये-फिराये कहना हो तो कहा जा सकता है उनकी स्थानीय राजनीति का केन्द्र-बिन्दु है तबादला। इस राजनीति को करने में मदद के लिए दो खेमे हैं। अध्यक्षजी का खेमा और अध्यक्षजी के विरोधियों का खेमा। एक थानेदार का तबादला करा आता है। भला यह भी कोई बात हुई कि अध्यक्षजी का कार्यकर्ता जेब काटते पकड़ा जाये तो उसे दारोगाजी हवालात में बन्द कर दें। क्षेत्र का ला एंड ऑर्डर पहली बार इतना खराब हुआ है। दूसरा खेमा जिला मुख्यालय पर जाकर धरना दे देता है कि ऐसा थानेदार तो आज तक आया ही नहीं। पूरा राम-राज्य है।

सरदार पूर्ण सिंह

आचरण की सभ्यता
निबंध
सरदार पूर्ण सिंह

यदि एक ब्राह्मण किसी डूबती कन्या की रक्षा के लिए – चाहे वह कन्या जिस जाति की हो, जिस किसी मनुष्य की हो, जिस किसी देश की हो – अपने आपको गंगा में फेंक दे – चाहे उसके प्राण यह काम करने में रहें चाहे जायं – तो इस कार्य में प्रेरक आचरण की मौनमयी भाषा किस देश में, किस जाति में और किस काल में, कौन नहीं समझ सकता? प्रेम का आचरण, दया का आचरण – क्या पशु क्या मनुष्य – जगत के सभी चराचर आप ही आप समझ लेते हैं। जगत भर के बच्चों की भाषा इस भाष्य‍हीन भाषा का चिह्न है। बालकों के इस शुद्ध मौन का नाद और हास्य ही सब देशों में एक ही सा पाया जाता है।

एक विधवा की आत्मजीवनी
स्त्री विमर्श
दुःखिनीबाला

भगवन्, क्या तुम भी इस अन्याय का बदला न लोगे? यदि अन्याय नहीं है तो तुम्हीं बताओ मेरा क्या दोष है? विधवा होने में मेरा कौन-सा हाथ था। यदि विधवा होने में मेरा हाथ होता तो विधवा होने के पहिले मैं अपना खातमा क्यों न करती? मुझे विधवा मानकर समाज ने अन्याय किया है किंतु वह सुखी है। सुखी ही नहीं मुझ पर अन्याय करने में मग्न है और तनिक भी कुंठित नहीं होता। वह अपनी मौजें ले रहा है। उसे यह चिंता नहीं कि जो कुछ वह कर रहा है उसका फल उसे ही भोगना पड़ेगा। वह यह नहीं समझता कि शरीर का यदि एक अंग भी हीन हो रहा है तो आज नहीं तो कल समस्त शरीर नष्ट हो जाएगा।

देवकीनंदन खत्री


चंद्रकांता संतति
उपन्यास
देवकीनंदन खत्री
खंड 5
सुनील गंगोपाध्याय

सुनील गंगोपाध्याय की कविताएँ


हाल की प्रविष्टयाँ
 


एक प्रस्तावित स्कूल की
नियमावली
भारतेंदु हरिश्चंद्र


(लगभग सवा सौ साल पहले की बात है। इस लेखक ने देखा ‘एक अद्भुत अपूर्व स्वप्न’। स्वप्न में उसने बिचारा कि देह लीला समाप्त हो जाने के पहले अपनी स्मृति को बनाए रखने के लिए कुछ करना चाहिए। पहले उसने सोचा, एक देवालय बनवा दूँ, पर कठिनाई यह थी कि ‘यह अँगरेजी शिक्षा रही तो मंदिर की ओर मुख फेर कर भी कोई नहीं देखेगा।’ फिर मन में आया कि कोई किताब लिखी जाए। पर यह भी निरापद नहीं था, क्योंकि ‘बनाने की देर न होगी कि कीट “क्रिटिक” काट कर आधे से अधिक निगल जाएँगे।’ अंत में, लेखक ने तय किया कि वह स्कूल खोलेगा। प्रस्तावित स्कूल की नियमावली की जैसी कल्पना की गई है, उसके आईने में हम आज की अपनी शिक्षा प्रणाली के कई अक्स देख सकते हैं।)
(1) नाम इस पाठशाला का ‘गगनगत अविद्यावरुणालय’ होगा।
(2) इसमें केवल वंध्या और विधवा के पुत्र पढ़ने पावेंगे।
(3) डेढ़ दिन से अधिक और पौने अट्ठानबे से कमती आयु के विद्यार्थी भीतर न आने पावेंगे।
(4) सेर भर सुँघनी अर्थात हुलास से तीन सेर तक कक्षानुसार फीस देनी पड़ेगी।
(5) दो मिनट बारह बजे रात से पूरे पाँच बजे तक पाठशाला होगी।
(6) प्रत्येक उजाली या अमावस्या को भरती हुआ करेगी।
(7) पहले पक्ष में स्त्री और दूसरे पक्ष में बालक शिक्षा पावेंगे।
(8) परीक्षा प्रतिमास होगी, परन्तु द्वितीया द्वादशी की संधि में हुआ करेगी।
(9) वार्षिक परीक्षा ग्रीष्म ऋतु, माघ मास में होगी। उनमें जो पूरे उतरेंगे वे उच्च पद के भागी होंगे।
(10) इस पाठशाला में प्रथम पाँच कक्षा होंगी और प्रत्येक ऋतु के अंत में परीक्षा लेकर नीचेवाले ऊपर की कक्षा में भर लिए जायेंगे।
(11) प्रतिपदा और अष्टमी भिन्न, एक अमावस्या को स्कूल और खुलेगा, शेष सब दिन बंद रहेगा।
(12) किसी को काम के लिए छुट्टी न मिलेगी, और परोक्ष होने में पाँच मिनट में दो बार नाम काटेगा।
(13) कुछ भी अपराध करने पर चाहे कितना भी तुच्छ हो ‘इंडियन पिनल कोड’ अर्थात ताजीरात हिंद के अनुसार दंड दिया जाएगा।
(14) मुहर्रम में एक साल पाठशाला बंद रहेगी।
(15) मलमास में अनध्याय के कारण नृत्य और संगीत की शिक्षा दी जाएगी।
(16) छल, निंदा, द्रोह, मोह आदि भवसागर के चतुर्दश कोटि रत्न घोलकर पिलाए जाया करेंगे।
(17) इसका प्रबंध धूर्तवंशावतंस नाम जगतविदित महाशय करेंगे।
(18) नीचे लिखी हुई पुस्तकें पढ़ाई जाएँगी।
व्याकरण – मुग्धमंजरी, शब्दसंहार, अज्ञानचंद्रिका।
धर्मशास्त्र – वंचकवृत्तिरत्नाकर, पाखंडविडंबन, अधर्म-सेतु।
वैद्यक – मृत्युचिंतामणि, मनुष्यधनहरण, कालकुठार।
ज्योतिष – मुहूर्तमिथ्यावली, मूर्खाभरण, गणितगर्वांकुर।
नीतिशास्त्र – नष्टनीतिदीप, अनीतिशतक, धूर्पपंचाशिका।
इन दिनों की सभ्यता के मूल ग्रन्थ – असत्यसंहिता, दुष्टचरितामृत, भ्रष्टभास्कर।
कोश – कुशब्दकल्पतरु, शून्यसागर।
नवीन नाटक – स्वार्थसंग्रह, कृतघ्नकुलमंडन।

अब जिस किसी को हमारी पाठशाला में पढ़ना अंगीकार हो, यह समाचार सुनने के प्रथम, तार में खबर दें। नाम उसका किताब में लिख लेंगे, पढ़ने आओ चाहे मत आओ।

अज्ञेय
अखिलेश
अन्तोन चेख़व
अमीर खुसरो
इंदिरा गोस्वामी
कबीर
कुणाल सिंह
कृष्णा सोबती
केदारनाथ अग्रवाल
गजानन माधव मुक्तिबोध
चन्द्रशेखर कंबार
चंद्रधर शर्मा गुलेरी
जयशंकर ‘प्रसाद’
जॉर्ज ऑरवेल
जोतीराव गोविंदराव फुले
तुलसीदास
तोमास त्रांसत्रोमर
दुःखिनीबाला
दुष्यंत कुमार
धर्मवीर भारती
नीलाक्षी सिंह
पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’
प्रेमचंद
फणीश्वरनाथ रेणु
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
भारतेंदु हरिश्चंद्र
भीष्म साहनी
मक्सिम गोर्की
मलिक मुहम्मद जायसी
मिर्ज़ा ग़ालिब
मोहन राकेश
रघुवीर सहाय
रवींद्र कालिया
रवींद्रनाथ टैगोर
रामचंद्र शुक्ल
राहुल सांकृत्यायन
शरतचंद्र चट्टोपाध्याय
लाला श्रीनिवास दास
लू शुन
श्रीलाल शुक्ल
शिवमूर्ति
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
सुदर्शन
हरिशंकर परसाई

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